जानिए न्यूज़ीलैंड को वो गुरूमंत्र जो टीम इंडिया को ले डूबा!
न्यूज़ीलैंड ने भारत को भारत में ही कैसे हराया। वो देश जिसने भारत में कोई भी टेस्ट मैच 1998 के बाद से नहीं जीता था, वो इक़दम से 3-0 से श्रृंखला कैसे जीत गया। न्यूज़ीलैंड के पास उनके चमत्कारी बल्लेबाज़ केन विलियम्सन नहीं थे। कप्तान भी आख़िरी समय बदला था। फिर भी नौ दिनों के अंदर 3-0 से भारत को कैसे रौंदा। न्यूज़ीलैंड को पिचें भी अलग अलग तरह की खेलने को मिली। बेंगलुरु की पिच सामान्य पिच थी, कोई स्पिन वग़ैरह उसमें नहीं थी। पूने में काली मिट्टी की पिच थी जिसमें गेंद स्पिन तो लेती है पर नीचे रहती है। मुंबई में लाल मिट्टी की पिच थी जहां पहली गेंद से स्पिन था और विकेट में उछाल भी था। इन अलग अलग परिस्थित्यों के बावजूद न्यूज़ीलैंड कैसे 3-0 से जीत गई। न्यूज़ीलैंड के कोच गैरी स्टेड कहते हैं कि जब हम भारतीय उपमहाद्वीप की तरफ़ आये तो हमारे सामने छह टेस्ट मैच थे। हमनें यहाँ की पिचों से निपटने के लिए तीन तरह की स्पिन की पिचें न्यूज़ीलैंड में तैयार करवाईं। एक कम स्पिन लेती, एक ज़्यादा स्पिन लेती और एक ऊपर नीचे रहने वाली पिच। उन पिचों पर हमनें दस दिन कड़ा अभ्यास किया। हमारी कोशिश ये होती थी कि बल्लेबाज़ों को रियेक्ट करने का टाइम ज़्यादा ना मिले। और ऐसे में बल्लेबाज़ों को अपने को निखारने को कहा गया। उनसे कहा गया कि स्पिनरों को शुरुआत से ही सेटल मत होने दो। उन्हें शुरुआत से ही परेशान करो। थोड़ा रिस्क उठाओ। इसमें तुम आउट हो सकते हो पर अगर 10-20 गेंदें खेल लीं तो फिर आप स्पिनरों से अच्छे से निपट सकते हो। हमारे बल्लेबाज़ों ने भारतीय स्पिनरों यानी रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा के वीडियो भी घंटों देखे। हमनें देखा की जडेजा हमेशा विकेटों में ही गेंदबाज़ी करने की कोशिश करते हैं। कुछ गेंदें स्पिन होती हैं और कुछ नहीं और ऐसी ही बोलिंग करने का संकल्प हमारे स्पिनरों ने किया। और समझने की कोशिश की कि वो कैसे गेंदबाज़ी करते हैं। फिर हमारा भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा शुरू हुआ। पहला मैच अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ था जो वर्षा के कारण धुल गया। फिर दो टेस्ट मैच श्रीलंका के ख़िलाफ़ थे जिसमें हम 2-0 से हारे पर एक मैच हम जीत सकते थे। एक पारी में हम 100 रनों पर आउट हो गये और उसने हमारी कमर तोड़ दी। और फिर आया भारत का दौरा। बेंगलुरु टेस्ट में भारतीय कप्तान रोहित शर्मा की काफ़ी आलोचना हो रही है कि उन्होंने टॉस जीत के बल्लेबाज़ी क्यों की। गैरी स्टेड कहते हैं कि अगर न्यूज़ीलैंड टॉस जीतता तो वो भी पहले ही खेलने का निर्णय लेता। और ऐसा इसलिए क्योंकि बाद में वो पिच काफ़ी घूमने वाली थी। रोहित का निर्णय ख़राब नहीं था। बस हमारी क़िस्मत अच्छी थी। जिस गेंद पर भारत के बल्लेबाज़ बीट होते थे, उसी को एज भी कर देते थे। गेंद उनके बल्ले का किनारा ले रही थी और मिस नहीं कर रही थी। फिर हमारे तेज गेंदबाज़ों ने गेंदबाज़ी भी बहुत अच्छी की। नये खिलाड़ी विल ओ राउर्क ने दिल जीत लिया। फिर जब हमनें वो टेस्ट मैच जीत लिया, तो हम में एक नया आत्मविश्वास जाग उठा था। फिर पूने में मिचेल सन्तनर छाये रहे। गैरी स्टेड कहते हैं कि हमारे बल्लेबाज़ों ने भी काफ़ी जुझाहरू बल्लेबाज़ी की। रचिन रवींद्र का औसत श्रृंखला में 50 से भी ऊपर का रहा। विल यंग ने 48 से ऊपर की औसत से रन बनाये।